जनसंचार के सशक्त माध्यमों में आकाशवाणी (रेडियो) तथा दूरदर्शन (टी.वी) माने गए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में इन दोनों ने अपूर्व सेवा की है। प्रिंट मीडिया (पत्र-पत्रिका) तथा विद्युतीय मीडिया की पत्रकारिता में पर्याप्त अन्तर होता है। यह आम मान्यता है कि आकाशवाणी और दूरदर्शन ने समाचार पत्रों को प्रतियोगिता के क्षेत्र में पछाड़ दिया है।
यद्यपि इस प्रतिस्पर्द्धा का ठोस आधार नहीं फिर भी इतना अवश्य है कि आधुनिक युग व्यस्तता भरा है | ऐसे आकाशवाणी और दूरदर्शन समाज की अपूर्व सेवा कर रहे हैं। युग में आज भारत में आकाशवाणी एक सुसम्पन्न, विकसित माध्यम है। सरकार के एकाधिकार में इसने समाचार प्रसारण तथा अन्य प्रसारणों की समुचित व्यवस्था करने में सफलता पा ली हैं। उपग्रहीय व्यवस्थाओं ने इसे व्यापक क्षेत्र में भी प्रसारण योग्य बना दिया है।
मौखिक भाषा की प्रकृति
आकाशवाणी के कार्यक्रम सभी वर्ग के लोग सुनते हैं। बच्चे से लेकर बूढ़े तक, लिपिक से लेकर उच्चाधिकारी तक गरीब से लेकर साहूकार तक सभी रेडियो सुनते हैं। पत्र-पत्रिका (प्रिंट मीडिया) में भाषा की प्रकृत्ति तत्त्सम, संस्कृतनिष्ठ प्रांजल परिमार्जित होती है। कहा भी जाता है कि समाचार पत्र भाषा के अध्यापक होते हैं परन्तु रेडियो की भाषा बोली जाती है और सुनी जाती है।
इसके लिए वही भाषा उपयोगी है जो आसानी से बोली और सुनी जा सके। मौखिक रूप से प्रयुक्त होने वाली भाषा बोलचाल की भाषा ही हो सकती है। आकाशवाणी के समाचार बुलेटिन, न्यूजरील तथा अन्य कार्यक्रमों की पटकथा लिखते समय सरल वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। वाक्य, ऐसे जो प्रभावात्मक है, संक्षिप्त है और स्पष्ट है उनका प्रयोग सही रहता है।
आकाशवाणी या रेडियो के लिए ज्यादा साहित्यिक भाषा कैसे प्रयोग में लायी जा सकती है। रेडियो के लिए आलेखन करने वाले का सम्यक ज्ञान, बोलचाल की भाषा का ज्ञान आवश्यक है। रेडियो कार्यक्रम केवल उद्योगपति, शिक्षक और विद्वान ही नहीं सुनते गांव की निरक्षर जनता मजदूर, किसान भी सुनते हैं।
अतः मौखिक प्रयोग में लायी जाने वाली भाषा सरल, सहज बोधगम्य, मुहावरे और लोकोक्तियों से युक्त होनी चाहिए। सरसता या रोचकता भी अनिवार्य तत्व है। यदि भाषा सम्मोहक शक्ति या आकर्षण से भरपूर है तो यह प्रयोग सफल माना जा सकता है।
रेडियो समाचार
प्रिंट मीडिया अर्थात् पत्र-पत्रिकाओं में समाचारों का प्रस्तुतीकरण विलोम स्तूपी (Inverted Pyramid) की तरह प्रतिपादित किए जाते हैं। रेडियो समाचार ब्रायलेट डायमंड (Diamond) की तरह होते हैं। रेडियो पर समाचार बुलेटिन की समय सीमा 5 मिनट, 10 मिनट या 15 मिनट की होती है। इस सीमित सी समय सीमा में समाचार का पूर्ण विवरण नहीं दिया जा सकता। बुलेटिन में अधिक समाचार देना श्रोताओं को चुनौती देने जैसा है।
10 मिनट के बुलेटिन अधिक से अधिक 10-11 समाचार ही दिए जा सकते हैं। समाचार पत्रों में समाचार का इन्ट्रो, बॉडी और टेक (निष्कर्ष) दिया जाता है, रेडियो समाचार में मुख्य विवरण, शेष वर्णन आदि होते हैं। यदि 10 मिनट के बुलेटिन में लगभग 1200 शब्दों के समाचार आ पाते हैं तो 15 मिनट के बुलेटिन में 1500 से 1800 तक शब्द होते हैं। सीधी सी बात है आम धारणा है कि एक मिनट में वाचक लगभग 100 शब्द बोल पाता है।
समाचार बुलेटिन के प्रकार
आम तौर पर दो तरह के समाचार बुलेटिन होते हैं देश के श्रोताओं के लिए, विदेशों में श्रोताओं के लिए। देश के समाचार बुलेटिन में सार्वभौमिक तथा प्रादेशिक समाचार बुलेटिन होते हैं। जो समाचार बुलेटिन सार्वदेशिक होते हैं। उनमें राष्ट्रीय स्तर के समाचार प्रादेशिक समाचार रहते हैं जबकि अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों को भी महत्व दिया जाता है।
प्रादेशिक समाचार बुलेटिन में प्रदेशों के समाचार दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक महत्त्व के विषयों को लेकर विशेष समाचार बुलेटिन भी प्रसारित होते हैं। रेडियो समाचार कैसे लिखें? रेडियो प्रसारण हेतु समाचार या तो समाचार बुलेटिन द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं या फिर न्यूजरील द्वारा समाचारों का प्रसारण होता है । समाचारों को महत्व के अनुसार बुलेटिन रूप दिया जाता है। अक्सर समाचार सरल, बोधगम्य भाषा में होते हैं।