फीचर लेखन में फीचर अंग्रेजी भाषा का शब्द है इसका अर्थ विभिन्न कोष ग्रन्थों में चित्र, दृश्य, प्राकृतिक दृश्य है। संधिपत्र, चेहरे का स्वरूप, निबन्ध लालित्यपूर्ण रचना भी इसी का अर्थ मानी जाती है। पुरुषोत्तमदास टण्डन ने फीचर को विशेष प्रकार का गद्य गीत माना। फीचर की कसौटी मनोरंजक एवं तड़पदार होना है। यह रचना कदापि नीरस, लम्बी या गम्भीर नहीं हो सकती।
डेविड डेरी की मान्यता है- “फीचर एक ऐसी समाचार कथा है जो पाठकों के जीवन, कल्याण या भविष्य को चाहे प्रभावित नहीं करे पर रोचक, आनन्ददायक और सूचित करती हो। डॉ. विवेकीराय फीचर को एक प्रकार से समाचारात्मक निबन्ध रूपक मानते हैं। वह चलती घटनाओं अथवा सामाजिक, राजनीति आदि क्षेत्रों की नवीनतम हलचलों का शब्द चित्र है। पत्रकार टाम हापकिनसन का मत है- फीचर समाचार की पृष्ठभूमि बताता है।
परिवर्तन का प्रकार और नये पाठकों को आकर्षित करने का माध्यम है। डॉ. ए.के. सिन्हा के विचार में “फीचर किसी न किसी मानवीय भावना के प्यार, घृणा, दया, भय, जुगुप्सा आदि के इर्द-गिर्द घूमता है। रूप को उजागर करता है जिससे रुचि जागृत हो, ध्यान केन्द्रित हो और पाठक की संवेदन भावनाओं को उद्वेलित करे।” अमेरीकी पत्रकार एलैक्सिस मैकिनी उस लेख को फीचर मानता है जो समाचार के मूलाधार क्या, कहां, कब और कैसे आदि से परे का प्रभाव प्रदान करे।
सन्तोष कुमार घोष के अनुसार- फीचर विस्तृत क्षेत्र की झांकी है । ब्लेयर— फीचर का अभिप्राय मनोरंजक ढंग से तथ्यों का प्रस्तुतीकरण मानता है। उसका उद्देश्य मनोरंजन करना जानकारी बढ़ाना है। डेनेवर पोस्ट के पामर हायट उस पत्र सामग्री को फीचर मानते हैं जो समाचारों व सम्पादकीय की परिभाषा में नहीं आती।
ऐलेक्सीस मेककिन्ने तो फीचर को समाचार के क्षेत्र से परे की वस्तु मानते हैं उन्होंने फीचर की परिभाषा इस प्रकार दी है- “फीचर की वास्तविक शक्ति और विशेषता कल्पना के प्रस्तुतीकरण में निहित है, परन्तु यह सत्य से विमुख नहीं होनी चाहिए। पाठकों की जिज्ञासापूर्ति करने वाली हो उसमें हास्य, आश्चर्य, विस्मय जागृत करने के गुण होने चाहिएं। हाक नोरीस तो लोगों को फीचर की सामग्री मानता है।
लुई कुक फीचर को समाचार का त्रिआयामीय रूप मानता है उसकी मान्यता है लेखक फीचर के माध्यम से अनुभव बताता है, भावनाओं को प्रेषित करता है, स्थानीय महक का रंगत की झलक देता है। केरी राबर्टसन फीचर को विचारों का अक्षुण्ण प्रवाह मानता है। आर्थर के अनुसार फीचर लेखक उत्तेजित हो जाता है। न्यूयार्क टाइम्स का विद्वान पत्रकार लैफ ओलसन फीचर को लेखनी का कर्म-कौशल मानता है । रार्बट रिचार्डस मानवीय संवेदनाओं को ही फीचर का रहस्य मानता है।
फादर कामिल बुल्के फीचर में फीचरत्व अर्थात् वैशिष्ट्य, लक्षण, रूपरेखा, रूपकत्व आदि का होना जरूरी मानते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि फीचर एक प्रकार का रेखाचित्र, शब्दचित्र, स्केच, शब्द प्रेरित दृश्य बिम्ब विधान है। इसमें भावों का अविरल प्रवाह है, भाव-संवेगों का उतार-चढ़ाव है। फीचर की सामग्री जीवन-जगत में विधान है।
संसार का हर विषय फीचर का विषय बन सकता है। इसमें लेखनी का कौशल रहता है। विचारोत्तेजना, भावोत्तेजना इसमें पूरी तरह दिखाई देती है। फीचर में फीचरत्व अर्थात् विशेषताओं का होना जरूरी है।
विशिष्ट गुणों के कारण ही फीचर प्रभावात्मक बनता है। तथ्यान्वेषण, मोहक तरीके से तथ्य प्रकटीकरण, तार्किकता, गत्यात्मकता, वैचित्र्य, गुणवत्ता, भावात्मकता आदि फीचर के गुण हैं फीचर जिज्ञासा उत्पन्न करने, कौतूहल को परितुष्ट करने में सक्षम होता है। वह केवल स्थितियों का आकलन नहीं करता हमें कई प्रश्नों के उत्तर भी देता है। फीचर लेखकीय गुणों पर आधारित रचना है
फीचर के प्रकार :
सामान्यतः तौर पर फीचर दो प्रकार के माने जाते हैं
1. समाचारों पर आधारित फीचर
2. विशिष्ट फीचर
1. समाचारों पर आधारित फीचर :
पत्रकारिता में समाचारों को पूर्ण महत्त्व दिया जाता है। बड़े मनोरंजन ढंग से समाचार की दुनियां की भावात्मक विचारात्मक अभिव्यक्ति की जाती है। समाचारों पर आधारित फीचर में समाचार को रोचक ढंग से, आकर्षक तरीके से प्रतिपादित किया जाता है। लोकरुचि का विशेष ध्यान रखा जाता है— तथ्यों, रहस्यों से कौतूहलता तो उत्पन्न की जाती है पर उनको अधिमान नहीं दिया जाता। समाचारी फीचर में कृत्रिमता नहीं होती।
प्रसंगों में नाटकीयता उत्पन्न नहीं की जाती। घटना के रंगीन पहलुओं को प्रस्तुत करने की चेष्टा होती है। मानवीय पक्ष को अधिक संजीदगी से प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है। घटना के सुखान्त एवं दुःखांत पहलुओं को विशेष रूप से प्रतिपादित किया जाता है।
2. विशिष्ट फीचर :
विशिष्ट फीचरों के अन्तर्गत जीवनी परक, ऐतिहासिक, यात्रा पर आधारित, फीचर, मानवीय रुचि के फीचर, दिशा-निर्देशक, स्वास्थ्य सम्बन्धी, विश्लेषणात्मक, साक्षात्कार पर आधारित, चिरस्मरणीय घटनाओं, ऐतिहासिक स्थानों, ऋतुओं, उत्सवों आदि पर आधारित फीचर आते हैं। विशिष्ट फीचर विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक समस्याओं पर आधारित हो सकते हैं किसी विशिष्ट व्यक्ति को भी फीचर का विषय बनाया जा सकता है।
फीचर चाहे समाचारों पर आधारित हो अथवा विशिष्ट कोटि का फीचर की कसौटी तो उसका आकर्षण तत्त्व है- शीर्षक, आमुख (इन्ट्रो) विषय का लालित्य, कमनीयता, निरन्तर प्रवाहात्मकता सरल बोधगम्यता, भावात्मक शब्द योजना है। चित्रमयता या बिम्ब विधान की क्षमता फीचर में अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। फीचर पृष्ठों में स्थान भरने (फीलर) का साधन नहीं है। फीचर लेखन वास्तव में एक कला है।
फीचर और समाचार में अन्तर :
फीचर और समाचार में मूलभूत अन्तर होता है। समाचारों में तथ्यात्मकता अत्यन्त आवश्यक है जबकि फीचर में ऐसा नहीं होता । फीचर एक निर्झर के समान है। उसमें न तो निर्णय होता है, न आंदोलनात्मक अभिव्यक्ति । वह कहानी की तरह कल्पना पर आधारित नहीं होता, विशुद्ध तथ्यात्मक भी नहीं होता । सम्पादकीय की तरह अवधारणा या मत प्रकटीकरण उसका लक्ष्य नहीं है। तथ्यों एवं रहस्यों प्रस्तुतीकरण जरूर फीचर में चार चांद लगाता है। समाचार कब, क्यों, कहां, कौन, कैसे, क्या आदि की परितुष्टि करने में सक्षम है।
फीचर का मैं इन ककारों पर दृष्टिपात तो होता है पर इसका अन्तिम लक्ष्य | समाचारों से नितान्त भिन्न है । समाचार तो तात्कालिक या सामयिक बोध पर आधारित होते हैं। समाचार ऐतिहासिक (ज्वलन्त) या वर्द्धमान होते है। वर्द्धमान या विकसनशील (Spreadnews) तो कई दिनों तक प्रसारित होते हैं जबकि ज्वलन्त हो तो वह बासीपन ले लेता है जबकि फीचर सदाबहार, शाश्वत प्रभाव लिए हुए हैं। फीचर जब पढ़ा जाता है वह ताजगी देता है, स्फूर्ति प्रदान करता है। फीचर से समाचार नहीं बनता, समाचारों से फीचर बन सकता है।
कई समाचारों में फीचर के गुण अवश्य आ सकते हैं। दृश्यात्मकता या विजन फीचर में जरूरी है। समाचार लेखन समाचारदाता या उप-सम्पादक (कॉपी सम्पादक) की प्रतिवेदन कला है, परन्तु फीचर का आलेखन एक चुनौती है। समाचार तथ्यात्मक, परन्तु फीचर विमर्शात्मक होता है।
फीचर लेखन के आयाम :
हर फीचर के लिए सबसे पहले जरूरी है विषय का चयन, किस विषय पर फीचर लिखा जाये। स्वेच्छा पर आधारित विषय या अनिच्छा पर आधारित विषय फीचर का विषय नहीं हो सकता। जिस विषय के प्रति अनुभूति, अनुभव जुड़े हों उन्हें ही फीचर का विषय बनाया जाता है। फीचर लेखन की कुशाग्र बुद्धि निरीक्षण करने में सक्षम होनी होनी चाहिए। यदि निरीक्षण शक्ति नहीं होगी फीचर अपूर्ण रहेगा।
फीचर लेखक का सामान्य ज्ञान विस्तृत होना चाहिए। उसे समाचारों, सरकारी, गैर-सरकारी प्रतिवेदनों तथा विभिन्न सन्दर्भों की जानकारी होनी चाहिए। उसे अध्येतावृत्ति अपनानी पड़ती है। फीचर के विषय और उससे जुड़ी सामग्री कच्चा माल है। फीचर की शैली ही श्रेष्ठ उत्पादन कर पाती है । तथ्यों का संग्रहण फीचर की विश्वसनीय बनाने में सहायक है। तथ्यों के अप्रामाणिक होने पर फीचर सही प्रभाव देने में अक्षम रहेगा। फीचर लेखक को सामग्री संकलन के उपरांत लेखन करना है। उसे अपनी रागात्मक अनुभूतियों, अनुभवों का लाभ उठाना चाहिए। फीचर को लिखकर पढ़ना, पुनः पढ़ना, आवश्यक दोष परिहार कर उसे विशुद्ध प्रभावपूर्ण बनाना आवश्यक है।
समाचार की भांति ही फीचर के तीन अंग आमुख (इन्ट्री) काया, शरीर (बॉडी) निष्कर्ष, उपसंहार (टेक) होते हैं। ब्रियन निकल्स मानना है कि फीचर का आदि, मध्य और अन्त सुन्दर होना चाहिए। फीचर का आमुख (इन्ट्रो) तो समाचार से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। आकर्षक, मनोरंजक प्रारम्भ आवश्यक है। यह फीचर में आकर्षण के लिए कार्य करता है। आमुख ही फीचर की आत्मा है। कहा से प्रारम्भ करें— यह प्रश्न फीचर लेखक के मस्तिष्क में बार-बार उत्पन्न होता है। आमुख मार्मिक हो, संयोजन से परिपूर्ण हो, अति अलंकारिकता न हो।
फीचर के महत्त्वपूर्ण अंशों का प्रतीक हो। फीचर की काया (बॉडी उसकी शैली पर निर्भर है। फीचर की लम्बाई, स्वरूप कैसा हो वर्णनात्मक फीचर में विषय की लम्बाई हो सकती है पर चित्रात्मक फीचर में ऐसा नहीं होता। वर्णनात्मक फीचर में तो रोचकता बढ़ायी जा सकती है, परन्तु चित्रात्मक फीचर में ओजस्विता, सजीवता, शोधात्मकता का गुण आवश्यक है।
व्याख्यात्मक फीचर में तार्किक क्षमता का परिचय दिया जा सकता है, परन्तु तर्कों की अतिशयता नीरसता, ऊबन उत्पन्न करती है। स्पष्ट सी बात है फीचर गागर में सागर भरने की कला है। अन्यथा लम्बा फीचर स्वाभाविक आकर्षक नहीं रख पाता। फीचर का उपसंहार भी प्रभावपूर्ण हो ।
टाम हापकिनसन के अनुसार- समाचार का आमुख झटका देन वाला है, परन्तु फीचर का आदि और अंत दोनों झटका देते हैं। हर अंग की समवेत संगति जरूरी है। इसमें अंग संतुलन आकर्षणवर्द्धक है। फीचर का शीर्षक देना भी चुनौतीपूर्ण है। आकर्षण, कौतूहलपूर्ण सारतत्त्व प्रदर्शक शीर्षक होना चाहिए। टाम हापकिनसन की मान्यता कि शीर्षक फीचर की कुंजी है, क्योंकि शीर्षक देखकर ही कोई पाठक उसे पढ़ने या न पढ़ने का निर्णय लेता है।
फीचर का शीर्षक कब दिया जाये इस बारे में विद्वान एकमत नहीं है। कोई अपने फीचर लेखन से पूर्व ही शीर्षक देने की बात कहता है जबकि फीचर लेखन के उपरान्त शीर्षक देना आसान होता है। शीर्षक पूर्व या बाद में दिया जाये पर यह तो जरूरी ही है कि शीर्षक विषय को सार रूप में स्पष्ट करने वाला हो। फीचर की भाषा ही उसे सुन्दर बनाती है। कठिन, दुरुह शब्द न हो, आत्मसात करने में कठिनाई न हो या शब्दकोश न देखना पड़े।
फीचर में तथ्यों की तोड़-मरोड़ नहीं चलती। अच्छा फीचर भावनाओं का प्रतीक होता है। मुहावरे, लोकोक्ति आदि द्वारा भाषागत सौन्दर्य तो लाया जा सकता है पर उसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। फीचर लेखन कहानी लेखन में अन्तर है फीचर में कल्पना के घोड़े नहीं दौड़ाए जा सकते। फीचर की भाषा में लेख, समाचार, कहानी सभी के गुण आ जाते हैं। फीचर की भाषा हर पाठक समझ सके, अतः सरल भाषा का प्रयोग करें। व्यक्तिगत विचार देना फीचर नहीं है।
प्रथमवाचक शब्द ‘मैं’ का प्रयोग नहीं करना चाहिए, परन्तु व्यक्तित्व की झलक फीचर में विद्यमान रहती है। फीचर लेखक समाचारों से सामग्री तो पा लेता है पर शैली नितान्त भिन्न ही रखता है। साहित्यिक भाषा-शैली फीचर की रंगमयता के लिए अपनायी जाती है। कभी किसी काव्यपंक्ति से या प्रसिद्ध उक्ति से भी प्रारम्भ किया जाता है। फीचर में आंकड़े नहीं होने चाहिए। फीचर में आंकड़े बोझिल बना देते हैं। आजकल सामाजिक विषय महत्त्वपूर्ण विवादास्पद मुद्दों पर फीचर लिखे जा रहे हैं।
किसी विशिष्ट व्यक्ति के जीवन को अंकित करने, राजनीतिक हलचल तथा मानवीय अनुभूतियों को उजागर करने वाले फीचर भी लिखे जाते हैं । लेम्बर्ट विल्सन की मान्यता है कि हत्या, नारी तथा धन सम्बन्धी फीचर अधिक रुचि से पढ़े जाते हैं। फीचर की प्रकृति चाहे कोई भी हो उसका सर्जक उसमें प्राणवायु भरने की कला जानता है। फीचर चाहे किसी भी प्रकृति का हो वह पाठकों की रुचि जागृत करने में सक्षम होना चाहिए। उसकी छाप मन पर अंकित हो जाये इसलिए फीचर लेखक को हर सायास प्रयत्न करना चाहिए ।