What do you understand by TV? | टी.वी से आप क्या समझते हैं?

आधुनिक युग में प्रिंट मीडिया के अपेक्षाकृत रेडियो, टी.वी. (विद्युतीय मीडिया) का अधिक प्रचार है। दूरदर्शन या टी.वी स्क्रीन पर स्विच दबाते हैं तो किसी भी चैनल या केन्द्र के रंगीन कार्यक्रम देखने को मिल जाते हैं। मल्टी चैनल प्रणाली ने विशिष्टतम या अपनी अभिरूचि के चैनल जैसे डिस्कवरी चैनल, सिनेमा से जुड़े कई चैनल स्टार फिल्म आदि पर कार्यक्रम देखे जा सकते हैं।

दूरदर्शन के माध्यम से दो प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। 

(1) समाचार 

(2) समाचारेतर अर्थात् धारावाहिक, फीचर फिल्म,इंटरव्यू, समाचार मीमांसा या अन्य मनोरंजक, ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रम इस समूचे कार्य को सम्पन्न करने के लिए पटकथा आवश्यक है।

पटकथा के बारे में इसी अध्याय में अलग विचार किया गया है। टी.वी. हेतु समाचार, फीचरादि की कवरेज करने के लिए संवाददाता होते हैं। 

Newscast समाचार कास्टिंग में दो प्रकार के समाचार होते हैं 

(1) प्रमुख समाचार (Hard News) तथा सामान्य समाचार (Soft News) संवाददाता कवरेज करने के लिए समाचार स्त्रोतों का पूरा ध्यान रखते हैं। टी.वी. केन्द्र का समाचार निर्माता (News Producer) यह सुनिश्चित करता है कि न्यूजकास्ट में किन समाचारों को शामिल किया जाना है। वीडियो टेप का समन्वय उसी का प्रमुख कार्य है।

टी.वी. या दूरदर्शन की भाषा में जो व्यक्ति समाचार प्रस्तुत करता है उसे टेलेन्ट (Talent या Anchor) कह देते हैं। वह स्टूडियो पर कास्टिंग करता है। समाचार पत्रों में सम्पादन कार्य की तरह न्यूज कास्ट का भी सम्पादन होता है। रिपोर्टर या संवाददाता द्वारा जो न्यूज । मिलते हैं उनका परिष्कृत रूप बनाना सम्पादक का कार्य है। संवाददाता भगीरथ प्रयत्न करके न्यूज इकट्ठा करते हैं। कई बार वह फालोअप या अनुवर्तन करके भी न्यूज के तथ्यों को एकत्र करते हैं। जब समाचार का सम्पादन कार्य हो जाता है तो पटकथा लेखन प्रारम्भ होता है। 

जिस प्रकार समाचार निर्माता (News Producer) का कार्य है ठीक उसी प्रकार फीचर निर्माता (Feature Producer) भी होते हैं। फीचर निर्माता ही स्क्रिप्ट देखकर Shots की सूची बनाता है। वीडियोग्राफर के पास वीडियो कैमरा व टेप आदि होते हैं। वीडियो रिकार्डिंग के साथ-साथ ध्वनि रिकार्डिंग का पूरा योगदान रहता है अतः श्रव्य निदेशक (Audio Director) के निर्देशन में यह कार्य सम्पादित होता है। एक प्रसारण केन्द्र में इन व्यवस्थाओं को पूरा करने में प्रकाश निर्देशक (Lighting Director) आदि योगदान देते हैं। 

टी.वी. के प्रसारण कार्य में टेलेन्ट (Talent) की विशिष्ट भूमिका है। वही प्रसारण केन्द्र में पटकथा को पढ़ता है। चूंकि दूरदर्शन एक दृश्य श्रव्य माध्यम है अतः इसमें टेलेन्ट की वेशभूषा, मेकअप, पृष्ठभूमि का विशेष महत्त्व होता है। एक विशेष बात है कि कामर्शियल ब्रेक का समय अंतराल व्यवस्थित होने के लिए ही है। इस समय में टेलेन्ट अपना मेकअप ठीक करता है और प्राप्त हुए नवीन समाचारों को स्क्रिप्ट में जोड़ता है। 

समूचे कास्टिंग को साकार करने में तकनीकी सहायक, तकनीकी निदेशक, सहायक निदेशक, श्रव्य (Audio) निदेशन, कैमरा ऑपरेटर, टेली प्राम्पॅटर, ऑपरेटर टेली सिने ऑपरेटर आदि होते हैं। समाचार प्रसारण या अन्य प्रसारणों में दृश्यों का संयोजन अत्यन्त महत्व रखता है। किसी भी टी.वी. स्टूडियो या प्रसारण केन्द्र में समूचा नियन्त्रण स्टूडियो निदेशक का होता है वास्तव में वही सारे काम का निरीक्षण करता है । 

कार्यक्रमों की रूपरेखा, कैमरे के उपयोग की संरचना (Camera Blocking Plot) निर्मित करना, शॉटस संख्या का निरीक्षण आदि वही करता है। उसी के आदेश पर स्टूडियो का कंट्रोल रूम काम करता है। टी.वी. प्रसारण केन्द्र में दो प्रकार के कार्य होते हैं

(1) वीडियो का निर्माण 

(2) वीडियो का प्रस्तुतिकरण 

चाहे कोई समाचार बुलेटिन हो या फीचर या धारावाहिक सभी में चल व स्थिर चित्रों की आवश्यकता बनी रहती है। स्टूडियो निदेशक के निर्देशानुसार यह कार्य सम्पन्न होता है।

वीडियो प्रस्तुतीकरण से पूर्व एडिटिंग व डबिंग का कार्य भी होता है। इसके अन्तर्गत कुछ परिशोधन, परिष्कार किए जा सकते हैं। किसी भी अंश को काटा या जोड़ा जा सकता है । दृश्य और श्रव्य का समन्वय एक सरल परन्तु जटिल प्रक्रिया है। यह एक तकनीकी प्रक्रिया है । डबिंग का कार्य तो ध्वनिगत वैशिष्टय उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। 

पटकथा कैसे लिखें 

टी.वी. और सिनेमा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। जैसे किसी मंचीय नाटक की प्रस्तुति से पूर्व पटकथा ( script) की आवश्यकता पड़ती है ठीक उसी तरह टी.वी. के हर कार्यक्रम की पहली आवश्यकता पटकथा है। किसी सफल फिल्म या सफल टी.वी. कार्यक्रम बनाने में जहां निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री, गीतकार, संगीतकार, कहानी लेखक, संवाद लेखक का योगदान होता है वहां पटकथा लेखक भी एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करता है। लाखों या करोड़ों रुपये की लागत से बनने वाली फिल्मों, धारवाहकों में पटकथा ही तो आधार बनती है ।

टी.वी. के लिए पटकथा लेखन करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि समाचारों की पटकथा और अन्य कार्यक्रम धारावाहकों आदि की पटकथा में अन्तर होता है। पटकथा लेखक की जागरूकता योग्यता ही उसकी सफलता का सिंहद्वार है। पटकथा लेखक को इस बारे में सचेत होना पड़ता है कि सामान्य लेखन और दृश्यों का विधान करने के लिए बिम्बग्राही लेखन में अन्तर होता है। पटकथा को सभी की सुविधाओं का ध्यान रखना पड़ता है जैसे निर्माता, निर्देशक, मंच या सैट, अभिनेता, छायाकार या कैमरामैन आदि । 

दूरदर्शन की पटकथा में गत्यात्मकता अत्यन्त आवश्यक है। यथार्थ बोध को प्रत्यक्ष रूप में प्रदर्शित करने की चेष्टा की जाती है। 

टी. वी. समाचार की पटकथा लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखें : 

1. समाचारों की विषयवस्तु और चित्रों की संगति होनी चाहिए। किसी प्रकार की कृत्रिमता या बनावटीपन समाचार को निष्प्राण कर देता है 

2. समाचार में घटनाओं का वही क्रम रखें जैसे घटना हुई हों जैसे किसी उद्घाटन समारोह की पटकथा में घटनाओं का क्रम इस प्रकार हो जाता है 

(1) उद्घाटन स्थल पर मुख्यातिथि का आगमन 
(2) स्वागत 
(3) उद्घाटन 
(4) मुख्यातिथि द्वारा भाषण 
(5) रैली की भीड़ का दृश्य । 

स्पष्ट सी बात है जो पहले हुआ उसका क्रम पहला और जो बाद में आये उसका क्रम दूसरा होगा। इससे समाचार की पूर्णता झलकती है। 

3. टी.वी. समाचार बुलेटिन की अपनी समय सीमा होती है अतः समाचार की पटकथा में संक्षिप्तता होनी चाहिए। शब्दों में सारगर्भिता आवश्यक है ताकि महत्व की बात ही समाचार में आ सके। शब्दों की अतिशयता से समाचार बोझिल और दुरूह बन जाते हैं।

 4. टी.वी. एक दृश्य श्रव्य (Audio Visual) माध्यम है। अतः समाचारों में चित्रमयता या बिम्बात्मकता का होना जरूरी है। प्रत्येक माध्यम में समाचार पटकथा आलेखन की प्रकृति भिन्न होती है जैसे प्रिंट मीडिया में पत्र-पत्रिका के लिए आलेखन शब्दों पर निर्भर है जबकि रेडियो में ध्वन्यात्मकता महत्व रखती है। 

टी.वी. में समाचार बोलने के साथ-साथ देखा भी जाता है अर्थात् टी.वी. समाचारों में उन दृश्यों या चित्रों और समाचार बोलने में सामंजस्य होना जरूरी हैं। कई बार किसी महत्वपूर्ण समाचार के लिए जब चित्र अनुपलब्ध होते हैं तो फाइल चित्रों की सहायता ली जाती है ये फाईल चित्र सन्दर्भ सेवा कार्यालय उपलब्ध कराते हैं या फिर घटनास्थल के ग्राफिक्स की सहायता ली जाती है। पटकथा में इन फाइल चित्रों का संकेत होता है या ग्राफिक्स के बारे में बताया जाता है। 

5. टी.वी. समाचार में रोचकता लाने के लिए किसी राजनेता के भाषण के अंश भी दिखाये जा सकते हैं या उससे साक्षात्कार भी दिखाया जाता है। पटकथा में यह रोचकता लाने का प्रयास होना चाहिए। इसी प्रकार किसी तीज त्यौहार, मेले या उत्सव का कार्यक्रम विभिन्न दृष्टिकोणों से दिखाने पर पटकथा में जिक्र रहता है। 

6. समाचार पटकथा लेखक को समाचारिक मूल्य का पता होना चाहिए। यह उसे अपनी सामान्य ज्ञान और अनुभवशीलता से पता चलता है। विशिष्ट अनुभव और योग्यताओं से लैस संवाददाता भी ऐसा कराने में सहायक होते हैं। 

7. संवाददाता अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर जाते हैं इस टीम में कैमरामैन व सहायक इत्यादि होते हैं। संवाददाता वहां की कवरेज अर्थात् न्यूज स्टोरी व चित्र अपने केन्द्र को भेजता है जहां समाचार पटकथा लेखक समाचार को सटीक बनाता है। बाढ़, अग्निकाण्ड विमान दुर्घटना आदि की कवरेज तो संवाददाता कर लेते हैं पर दृश्यों की व्याख्या या टीका तो पटकथा लेखक ही करते हैं। 

स्पष्ट है कि दूरदर्शन पर किसी घटना की लम्बी चौड़ी व्याख्या नहीं की जा सकती । वहां तो संकेतात्मक या प्रतीकात्मकता ही काफी रहती है यदि व्याख्या या टीका कठिन बना दी जाये तो चित्रों के दृश्याविधान में समस्याएं उत्पन्न होगी जिससे समाचार का रसास्वादन दर्शक नहीं कर पायेंगे। 

8. समाचारों में घटनास्थलों की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। आम तौर पृष्ठभूमि में उस क्षेत्र का संवाददाता दिखाया जाता है और वही से अधिक से अधिक सूचना प्रदान करता है ऐसे अवसर पर समाचार वाचक जो बुलेटिन प्रस्तुत कर रहा है वह मौन रहता है या कम बोलता है। इसका सीधा अभिप्राय है कि पटकथा लेखक चाहता है कि दर्शक परितुष्टि के घटनास्थल की सीधी जानकारी प्राप्त कर सके। अतः वह पटकथा में प्रत्यक्ष संवादशीलता के लिए संकेत रखता है। 

9. समाचारों की शुष्कता दूर करने के लिए संगीत का प्रयोजन भी किया जा सकता है या फिर किसी समाचार का आलेखन नाटकीय शैली में हो सकता है। ऐसा प्रयोग कर पटकथा में मनोरंजकता लायी जा सकती है। टी.वी. मीडिया में ऐसे समाचार स्पन्दनशील (Soft News) कहलाते हैं। 

कुल मिलाकर दूरदर्शन के समाचार आलेखन में संक्षिप्तता, स्पष्टता, प्रभावात्मकता का ध्यान रखा जाता है। संक्षिप्त सरल वाक्य विन्यास, मुहावरे लोकोक्तियों का प्रयोग प्रचलित शब्दों का विशेष प्रयोग अत्यन्त जरूरी है। सरसता का संचार करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए। एक विशेष बात यह है कि पटकथा लिखने के उपरांत आवश्यकतानुसार उसका परिष्कार या संशोधन भी किया जाये। 

समाचारेतर सामग्री का पटकथा आलेखन 

हमें पता है आधुनिक युग में टी.वी. या फिल्में लाखों लोगों का मनोरंजन और ज्ञानवर्द्धन कर रहे हैं। दूरदर्शन पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम होते हैं जिनमें भेंटवार्ता के अतिरिक्त फीचर, डाक्यूमैंटरी, विज्ञापन, धारावाहिक आदि मुख्य हैं। इन सबकी पटकथा की अलग-अलग विषयानुरूप विशेषताएँ होती हैं। इसी तरह फिल्मों की पटकथा भी विषयगत होती है। यदि विज्ञापन की पटकथा लिखनी है तो उत्पादन की विक्रयशीलता ग्राहक की जिज्ञासावृद्धि (औत्सुक्य) की मांग अधिक होती है। फीचर में फीचरत्व का होना जरूरी है। डाक्यूमैंटरी मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धक भी होती है। 

पटकथा लेखक को कार्यक्रम का उद्देश्य स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए। पटकथा का उत्स बिन्दु उसका बीजवपन कहानी (कथा) से होता है। किसी भी फिल्म या धारावाहिक के अभिनेता – नेत्री इसी के अनुरूप अभिनय करते हैं। गीत, संगीत, नृत्य आदि का विधान कहानी को और रोचक बना देता है। कहानी लेखक मूलकथा प्रस्तुत करता है। इसी कथा की मूल संवेदना, भावानुभूति और उद्देश्य पर पटकथा बनती है। किसी सुविख्यात लेखक की रचना भी पटकथा का आधार बन सकती है जैसे प्रेमचन्द की औपन्यासिक कृति गोदान या गबन । पटकथा लेखक निर्माता व निर्देशक की अनुभूति को ध्यान में रखकर पटकथा लिखता है। 

पटकथा आलेखन सरल कार्य नहीं है। पटकथा लेखक बड़ी सूक्ष्मता से मूलकथा को जान पड़ता है और उस कहानी के मुख्य प्रसंगों, घटनाओं को रेखांकित कर लेता है। वह स्टेप आउट लाइन अर्थात कहानी को कई भागों या दृश्य में विभाजित कर लेता है। पटकथा लेखक किसी भी पात्र को छोड़ नहीं पाता और न ही मूलकथा की संचेतना से छेड़छाड़ कर सकता है। 

लेखक को ऐतिहासिक सन्दर्भों की प्रामाणिकता बरकरार रखनी पड़ती है अर्थात अपनी कल्पनाशीलता को छोड़ना पड़ता है। यदि मूलकथा का विषय युगीन सन्दर्भों पर आधारित है अर्थात् सामयिक है तो भी 

पटकथा लेखक को घटनाओं की निरन्तर : 

परिवर्तन शीलता पर नजर रखनी पड़ती है। उसे कहानी को दृश्यों में बांटना चाहिए। पटकथा का कंकाल अर्थात विस्तृत रूप समझ कर घटनाओं और प्रसंगों के अनुरूप दृश्य विधान करना चाहिए। ऐसी घटनाओं और प्रसंगों को छोड़ना पड़ता है जिनका मंचन संभव नहीं है। इसके बाद उसे कथा को नाट्य रूप में परिवर्तित करना पडता है। जिसमें दृश्य का पूरी मंचीय साजसज्जा, प्रकाश ध्वनि संकेत देने के साथ-साथ अभिनेताओं की प्रस्तुति संवाद आदि का विवरण दिया जाता है। 

एक विशेष बात यह है कि पटकथा लेखक जनता या दर्शक वर्ग की इच्छाओं का ध्यान रख कर कुछ पटकथा में जोड़ता है या छोड़ता है यह उसके विवेक पर अवलम्बित है। पटकथा लिखते समय कार्यक्रम की समयावधि का पूरा ध्यान रखा जाता है। संवादों की प्रभावात्मकता से ही काम पूरा नहीं हो जाता। यद्यपि किसी फिल्म या टी.वी. कार्यक्रम की सफलता में कथोपकथन या संवाद आवश्यक हैं, मूल कथा के संवादों की भावात्मकता को भी ध्यान में रखना पड़ता है। 

पटकथा आलेखन एक चुनौती भरा कार्य है। यह एक तकनीकी भरा कर्मकौशल है। सृजनात्मक आलेखन (Creative Writing) और पटकथा आलेखन (Script Writing) में यही अन्तर है। मूलकथा और पटकथा में एक विशिष्ट अन्तर यह है कि पटकथा में चित्रपट के अनुरूप कथा का रूपान्तरण किया जाता है। 

सैट और सुविधा के लिए दृश्यों का विभाजन किया जाता है अनावश्यक संभागों का परित्याग किया जाता है तथा निर्देशक, अभिनेता, नेत्री की सुविधाओं के लिए आवश्यक निर्देश भी दिए जाते हैं कि किस दृश्य में आंगिक और वाचिक कौन सी चेष्टाएं होगी, किस पात्र को किस दृश्य में आना और जाना है और संवादों की संक्षिप्तता और प्रभावात्मकता का भी ध्यान रखा जाता है। 

डॉक्यूमेंटरी ड्रामा (टेली ड्रामा) 

दृश्य श्रव्य की एक अन्य विधा डॉक्यूमेंटरी है। यद्यपि डॉक्यूमेंटरी सरलतापूर्ण कार्य माना जाता है परन्तु यह दायित्वपूर्ण कार्य है। इसके लेखक का सामान्य ज्ञान होना बहुत जरूरी है। वृत्त चित्र की सफलता के लिए अपने समाज, परिवेश का ज्ञान आवश्यक है। ऐतिहासिक तथ्यों, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक तथ्यों को जानना आवश्यक है। 

पूरे परिवेश में बहुत कुछ ऐसा है जिसमें आम नागरिक अनभिज्ञ रहता है। डॉक्यूमेंटरी एक ऐसा प्रयास है जो किसी अप्रत्यक्ष को आलोक में ला सकता है। टेली ड्रामा या डॉक्यूमेंटरी का सर्वप्रथम उद्देश्य तो सूचना प्रदान करना है। टेली ड्रामा के लेखक को दृश्यों का विभाजन तथा स्वर आदि के तालमेल का ध्यान रखना पड़ता है। फीचर फिल्म और डॉक्यूमेंटरी में अन्तर यह है कि डॉक्यूमेंटरी में मुख्य वाचक की विशिष्ट भूमिका है जो दृश्य होते हैं उनके साथ-साथ वाचन भी होता है। मुख्य वाचक वृत्तचित्रों के बीच मानो धुरी का कार्य करता है। 

किसी भी विशिष्ट सूचना या महत्वपूर्ण सन्दर्भ को टेलीड्रामा या डॉक्यूमेंटरी ड्रामा के रूप में प्रतिपादित किया जा सकता है। इसकी कथा निर्मित करते समय सूचना व घटना का योगदान रहता है। डॉक्यूमेंटरी की कथा लिखते समय जागरूकता का परिचय दिया जाता है, अभिनेता, नेत्री की आंगिक, वाचिक चेष्टाओं का निर्देश दिया जाता है। टेली ड्रामाकार या डॉक्यूमेंटरी ड्रामाकार प्रसंगों या सन्दर्भों के अनुरूप, घटनाओं के अनुरूप रचनाविधान करते हैं । 

फिल्म, पटकथा लेखन की तरह इसमें भी दृश्य विभाजन, संवाद लेखन, पात्र योजना, ध्वनि एवं प्रकाश का निर्देश आदि होते हैं। काफी कुछ मध्यस्थ भूमिका निभाने वाले वाचक या सूत्रधार पर निर्भर है। उसकी वाणी और भाव भंगिमा टेलीड्रामा में सजीवता रोचकता प्रदान कर सकती है। 

डॉक्यूमेंटरी ड्रामा की पटकथा नाटकीयता लिए रहती है। सच तो यह है नाटकीयता ही डॉक्यूमेंटरी में प्राणतत्व है। सैट या शूटिंग स्थल, ध्वनि और प्रकाश योजना, संगीत व्यवस्था किस टेलीड्रामा की सफलता की असंदिग्ध बनाने वाले तत्व हैं। डॉक्यूमेंटरी को सफल बनाने में पार्श्व संगीत, गीति योजना, पात्रों की साजसज्जा का विशेष योगदान होता है।

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