विज्ञान शब्द वि+ज्ञापन से बना है। ‘वि’ का अभिप्राय है विशेष या विशिष्ट तथा ज्ञापन का तात्पर्य है ज्ञान कराना। इस तरह विज्ञापन का अर्थ हुआ विशेष ज्ञान कराना। आधुनिक युग में सुई से लेकर वायुयान तक सभी के विज्ञापन आकर्षक, सम्मोहक रूप में विद्यमान हैं। विज्ञान वह कला है जो उत्पाद की अधिकतम जानकारी प्रदान करती है और उसकी विक्रयशीलता में वृद्धि करने की चेष्टा करती है। प्रो. जेम्स.ई. लिटिलफील्ड तथा सी.ए. कीर्कपैट्रिक ने अपनी पुस्तक ‘Advertising : Mass Communication in Marketing’ में स्पष्ट किया है कि विज्ञापन का मुख्य काम उपभोक्ता व्यक्ति का ध्यान वस्तु के प्रति बढ़ाना है।
विज्ञापन के अन्तर्गत सूचना इश्तिहार आदि द्वारा क्रय-विक्रय वाली वस्तुओं की सूचना दी जाती है और उपभोक्ताओं को खरीदने के लिए तत्पर किया जाता है। विज्ञापन में अपूर्व शक्ति है कि वह उपभोक्ता की अभिरुचि वस्तु के प्रति बढ़ाकर उसकी क्रयशक्ति को प्रोत्साहित करता है। बाजारी उद्देश्य के अतिरिक्त सामाजिक कल्याण के लिए भी विज्ञापनों का प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ है कि विज्ञापन का उद्देश्य केवल उत्पादित वस्तु की विक्रयशीलता बढ़ाना नहीं है।
विभिन्न प्रकार की सेवाओं जैसे निःशुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर, पोलियो ड्राप्स आदि के विज्ञापन भी दिये जाते हैं। चाहे विज्ञापन बाजारी (आर्थिक) हो या सामाजिक इतना जरूर है कि विज्ञापन का प्रभाव मनोवैज्ञानिक होता है। विज्ञापनों का एक लाभ तो यह है कि इससे बाजार में आयी वस्तु के बारे में ज्ञान दिलाता है उसकी प्रायोगिक क्षमता और उस जैसी अन्य वस्तुओं से उत्तमता सिद्ध कराता है।
विज्ञापन से वस्तु के मूल्यों में प्रदत्त रियायतों का वर्णन भी होता है। इस तरह हम विज्ञापन का उद्देश्य इस प्रकार मान सकते हैं
1. वस्तु के बारे में शीघ्र सूचना प्रदान करना ।
2. उपभोक्ता मन में वस्तु के क्रय सम्बन्धी प्रोत्साहन देना ।
3. श्रेष्ठ व उत्तम वस्तु देने की चेष्टा ।
4. मूल्यों का निर्धारण कर न्यूनतम मूल्य स्पष्ट करना ।
5. समाज का जीवन स्तर ऊंचा उठाना ।
उपर्युक्त उद्देश्य बाजारी विज्ञापनों के हैं जबकि अन्य विज्ञापनों के उद्देश्य इस प्रकार हैं
1. विज्ञापन द्वारा नियुक्तियों, विवाह आदि की सूचना दी जाती है।
2. विज्ञापन द्वारा विद्यार्थियों की प्रवेश सूचना दी जाती है।
3. सेवाओं को साकार करना ।
विज्ञापन जहां व्यापारी वर्ग के लिए लाभकारी हैं वहां उपभोक्ता वर्ग के लिए उतने ही लाभकारी हैं। उत्पादकों को इससे ग्राहक बनाने में सहायता मिलती है। उपभोक्ता को भी सही वस्तु का चयन करने में सहायता मिलती है।
स्पष्ट है कि विज्ञापन अत्यन्त महत्त्व रखता है। विज्ञापन के प्रकार निम्नलिखित हैं
1. मौखिक (श्रव्य) : (रेडियो, लाउड स्पीकर या मुख द्वारा बोलकर)
2. लिखित : (पत्र-पत्रिकाओं में प्रदत्त विज्ञापन, इश्तिहार, पैम्पलेट, होल्डर, पोस्टर आदि)
3. दृश्य-श्रव्य : (टी.वी., फिल्म आदि द्वारा)
एल्बर्ट लास्कर ने 1920 में विज्ञापनों के विषय में कहा था “Advertising is salesmanship in print” उस समय तक अन्य संचार माध्यमों का पूर्ण विकास भी नहीं हुआ था। आज रेडियो और टेलीविजन विज्ञापन प्रसारित करने के सशक्त माध्यम हैं।
प्रिंट मीडिया अर्थात् पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापनों का महत्त्व यह है कि पत्र-पत्रिकाओं में आय का एक मुख्य साधन विज्ञापन हैं। विज्ञापनदाता भी अपना विज्ञापन उसी पत्र-पत्रिका को देते हैं जिसका प्रसार संख्या अर्थात् पाठक संख्या अधिक हो। पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन मुद्रित होते हैं।
इनमें निम्न तीन प्रकार के विज्ञापन होते हैं
1. वर्गीकृत विज्ञापन
2. हाशियाबद्ध विज्ञापन
3. डिस्प्ले विज्ञापन
वर्गीकृत विज्ञापन सामान्य छोटे सामान्य टाइप में छापे जाते हैं। इनके अन्तर्गत नौकरियों, वर-वधू की खोज (वैवाहिक विज्ञापन) टेण्डर (निविदा) सूचना, गुमशुदा, किराये के लिए मकान या प्लाट, मकान बिकाऊ आदि के विज्ञापन होते हैं और इनकी शब्द सीमा भी कम होती है। इसका लाभ यह है कि इस द्वारा सम्बन्धित वर्ग विशेष को सूचना मिल जाती है। यह विज्ञापन अन्य विज्ञापनों की अपेक्षा कम खर्चीला होता है। हाशियाबद्ध विज्ञापन एक निश्चित खाका या हाशिया में बड़े-छोटे पंवायट में होता है इसमें अक्सर दो कॉलम विज्ञापन या अधिक बड़े विज्ञापन होते हैं, परन्तु इसमें कोई चित्र नहीं होता।
इतना अवश्य है कि इसमें मुद्रित शब्द कलात्मक होते हैं। डिस्प्ले विज्ञापन शोकेस विण्डो (show case window) की तरह होता है जिसका द्रष्टा पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। डिस्प्ले विज्ञापन में चित्रात्मकता होती है। नर-नारी सौन्दर्य और चित्रों में प्राकृतिक वैभव बिखेरती पार्श्वभूमि अनायास अभिभूत करने का कार्य करती है। मोटे तौर पर प्रिंट मीडिया के यही विज्ञापन प्रकार हैं। आज टी.वी. और रेडियो विज्ञापन का अधिकतर प्रचलन है। विभिन्न चैनलों पर धारावाहिक, फिल्प या अन्य कार्यक्रम किसी उत्पादनकर्त्ता कम्पनी के सौजन्य से होते हैं।
फलस्वरूप कुछ विज्ञापन कार्यक्रम के बीच कार्मसियल ब्रेक में दिखाये जाते हैं। टी.वी. पर स्लाइड द्वारा स्थिर विज्ञापन तथा छोटे समय की वीडियो फिल्मों का प्रदर्शन होता है। इनमें मॉडल अभिनेता व नेत्री अपनी नाटकीय भाव-भंगिमा, संवादशीलता से वस्तु का प्रचार करते हैं। ये पटल पर गहरा असर छोड़ते हैं। रेडियो विज्ञापन का प्रचलन काफी दृश्यमान विज्ञापन रंग और स्वरूप के कारण व्यक्ति के मानस पटल पर गहरा असर छोड़ते हैं।
रेडियो विज्ञापन का प्रचलन काफी पुराना है। काफी समय पूर्व विविध भारती, बिनाका टॉप कार्यक्रम विज्ञापनों के कारण काफी लोकप्रिय हुए। इन विज्ञापनों में ध्वन्यात्मकता अर्थात् ध्वनि के आरोह-अवरोह का विशेष प्रभाव होता है। अन्य प्रचलित विज्ञापनों में सेल या प्रदर्शनी पर बनर, पोस्टर, दीवारों पर लगे इश्तिहार आदि हैं। आपने विद्यार्थियों के प्रवेश दिनों में स्कूली विज्ञापन या दीवाली, नववर्ष, क्रिसमिस आदि पर रियायती दरों पर वस्तु विक्रय के लघुकाय विज्ञापन पर दैनिक पत्रों में आये अवश्य देखे होंगे। इन सब प्रकार के विज्ञापनों का विशेष महत्त्व होता है।
विज्ञापन लेखन : विज्ञापन लिखना एक विशिष्ट कला है। सच तो यह है कि विज्ञापनों की भाषा अत्यन्त अलंकारिक होती है, मुहावरे लोकोक्ति यहां की, कि उसकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति मन को अहलादित करती है। विज्ञापन अत्यन्त सम्प्रेषणशीलता की मांग रखता है उसमें गागर में सागर भरने का कर्म कौशल विद्यमान है। संक्षिप्तता उसकी अनिवार्यता है। प्रिंट मीडिया विज्ञापनों की रंगों, अक्षरों की बनावट में सजीवता लाने का प्रयास किया जाता है। टी.वी. विज्ञापनों में चाक्षुष आकर्षण अर्थात् चक्षुओं को वशीभूत करने वाले विज्ञापनों को श्रेष्ठ माना जाता है।
रेडियो विज्ञापनों में श्रवणेन्द्रियों को प्रभावित करने का प्रयास होता है। इन रेडियो विज्ञापनों में ध्वनि या घोष का महत्त्व है। विज्ञापन तैयार करना एक वैज्ञानिक क्रिया जैसा है। सबसे पूर्व विज्ञापन का डिजाईन तैयार किया जाता है जिसमें वस्तु की प्रकृति के अनुरूप सामग्री या मैटर को स्थापित किया जाता है फिर इसका मेकअप अर्थात् अलंकरण कार्य होता है जिसमें कटाव-छटांव किया जाता है।
विविापन का शीर्षक या पहली पंक्ति अत्यंत प्रभावात्मक या मारक अनुभूति लिए रहती है। टी.वी. विज्ञापन व रेडियो विज्ञापन में भी स्क्रिप्ट लेखन कार्य होता है जो अत्यन्त चुनौती भरा है। मौखिक विज्ञापनों में तो लाउड स्पीकर के प्रकार तथा उदघोषक वाचिक की बोलने की क्षमताओं का भी योगदान होता है।
अन्त में कहा जा सकता है कि वर्तमान युग विज्ञापनों का युग है, बिना विज्ञापन बड़ी-बड़ी कम्पनी भी प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाती हैं। विज्ञापन लेखन विज्ञान के साथ कलात्मक कार्य भी है। भाषा, शीर्षक, संक्षिप्तता, तर्कसम्मतता, रंगमयता, मुद्रण आदि का संयोजन ही विज्ञापन को सफल बनाता है।