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What is the code of conduct for journalism? | पत्रकारिता के लिए आचार संहिता क्या है?

What is the code of conduct for journalism? | पत्रकारिता के लिए आचार संहिता क्या है?

किसी भी संस्था, संगठन में व्यवस्था अत्यन्त आवश्यक पहलू है । किसी विद्यालय, सैन्यसंस्था या पुलिस में अनुशासन की प्राथमिकता देखते ही बनती है। ठीक इसी प्रकार पत्रकारों जो स्वयं को कलम का धनी कहते हैं उन्हें नियन्त्रित करने, संयम में लाने की अवधारणा से आचार संहिता को समझा जा सकता है। 

वास्तव में आज पत्रकारिता एक आदर्श न रहकर व्यवसाय या है उद्योग का रूप धारण कर चुका है। व्यवसाय का उद्देश्य धन और कमाना होता है। झूठी वाहवाही, प्रशंसा प्राप्त कर पत्रकार लोग अपनी . यश धाक जमाने में जुट जाते हैं तो उनके आचरण को तटस्थ, निष्पक्ष, बेलाग करने के निमित्त आचार-संहिता की जरूरत पड़ती है। समाचार-पत्र मात्र व्यवसाय नहीं है। इसके माध्यम से ‘जनमत’ निर्माण किया जाता है। समाचार-पत्रों की आवाज जनता की आवाज है । पत्रकारिता समाज का दिशा-निर्देश करती है उसे प्रोत्साहित करती है और समाजोत्थान का स्वप्न साकार करने में जुटी रहती है। 

जब सनसनीखेज समाचार परोस कर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने की चेष्टा है जब बिक्री में वृद्धि या ग्राहक प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए सारे आदर्शों को ताक पर रख दिया जाये तो पत्रकारों के आचरण पर अंकुश जरूरी हो जाती है। स्पष्ट तो यह है कि यदि समाचार-पत्र सभ्यता, संस्कृति का उन्नयन कर सकती है तो पत्रकारिता समाज को दिग्भ्रमित भी कर सकती है। विघटनशील प्रवृत्तियों से दूर करने के लिए पत्रकारों की आचार संहिता की आवश्यकता पड़ती है। यदि पत्रकार समाज में वैमनस्य, द्वेष, दुर्भावना फैलाने के प्रयास करते हैं तो वह पीत पत्रकारिता ही करते हैं। 

बाबूराव विष्णुराव पराङकर की मान्यता है कि सच्चे पत्रकार लिए पत्रकारिता केवल कला या आजीविका का साधन नहीं होना चाहिए बल्कि कर्त्तव्य साधन की एक पुनीत वृत्ति भी होनी चाहिए।

लंदन टाइम्स के सम्पादक विखेमस्टीड ने स्पष्ट किया है- “मैं, एक पुराना पत्रकार हूं। इसलिए पूरे तौर से नहीं मान सकता कि | पत्रकारिता केवल एक पेशा या वृत्ति है। मैं समझता हूं कि पत्रकारिता कला भी है, वृत्ति भी है और जनसेवा भी जब तक यह कोई नहीं समझता कि मेरा कर्त्तव्य अपने पत्र के द्वारा लोगों का ज्ञान बढ़ाना, | उनका मार्ग-दर्शन करना है तब तक उसे पत्रकारिता की चाहे कितनी ट्रेनिंग दी जाये, वह सच्चा पत्रकार नहीं बन सकता।” 

जिस तरह डॉक्टरों, वकीलों, अध्यापकों के आचरण को नियमबद्ध करने के लिए कुछ सीमा रेखाएं मर्यादाएं निर्धारित की जाती है। उसी प्रकार पत्रकारों की भी कुछ मर्यादाएं बांधी जाती है। यह उल्लेखनीय है कि आचार संहिता कभी भी बाहर से थोंपी नहीं जा सकती विभिन्न संगठन पत्र कार्यालय अपनी-अपनी स्वेच्छा से कुछ आचार संहिता बना लेते हैं और उनका क्रियान्वयन करते हैं । इस तरह की आचार संहिता लगभग प्रत्येक राष्ट्र में मिल जाती है। स्वीडन की पत्रकार आचार-संहिता में स्पष्ट किया गया है कि पत्रकारों को आदर्शों पर चलना चाहिए, हर समाचार को सही, सार्थक, उपयुक्त शीर्षक प्रदान करने चाहिएं। 

फ्रांस में पत्रकारों को अपने लेखों के विषय में उत्तरदायी मानने की आचार-संहिता है। चाहे लेख पर लेखक का नाम इत्यादि न भी प्रकाशित हो तो भी वह अपने लेखन कर्म के लिए उत्तरदायी है। फ्रांस के पत्रकारों ने किसी का अपयश, बुराई, चरित्र हनन् करने के कार्य को उचित नहीं माना। पत्रकारों को दस्तावेज बदलने का कोई कुत्सित प्रयास नहीं करना चाहिए। समाचार-पत्र की भी एक साख होती है प्रतिष्ठा होती है। नये पत्रकारों को समय-समय पर अपने वरिष्ठ पत्रकारों से सलाह-मशवरा लेकर ही निर्णय करने चाहिएं। यदि लेखक लिखते समय कोई संदर्भ किसी रचना से लेना ही पड़े तो मूल लेखक का नामोल्लेख करना चाहिए। 

प्रैस की भूमिका पुलिस जैसी कदापि नहीं है, अतः प्रैस को स्वाधीनता का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। पत्रकारों को ऐसे समाचार कदापि नहीं देने चाहिएं जिनसे समाज में तनावग्रस्तता, हिंसा को बल मिलता हो। प्रैस में कार्य करना बरकरार रखनी चाहिए। पत्रकारों को परस्पर वैमनस्य रख कम वेतन व शर्तों पर अपने साथी का पद नहीं हथियाना चाहिए। समाचारों और रचनाओं की चोरी अच्छी नहीं होती। 

पत्रकारिता ईमानदारी से पूर्ण कार्य है। न तो झूठा बहाना बनाकर कोई समाचार प्राप्त करें और न किसी का विश्वासघात करें। पत्रकारों को निजी वित्तीय स्वार्थों के विज्ञापनों पर हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए। और न ही किसी निजी या सार्वजनिक उपक्रम से कोई राशि या धन लेना चाहिए। 

स्वीडन, फ्रांस की ही भांति जर्मनी में भी सन् 1961 में एक आचार-संहिता बनायी गयी इसमें स्पष्ट किया गया कि पत्रकारों को अश्लील सामग्री से युक्त पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, छायाचित्रों का प्रकाशन नहीं करना चाहिए। उन्हें हिंसा को प्रेरित करने वाले लेखों का प्रकाशन नहीं करना चाहिए। 

इस आचार संहिता में स्पष्ट है कि कोई भी व्यवस्था पत्रकारों को नियन्त्रित करें उससे बेहतर है कि पत्रकार स्वयं मर्यादित हों यदि पत्रकार अपना कार्य या दायित्व ईमानदारी से निभाते हैं किसी निरीक्षण या आचार-संहिता की जरूरत ही नहीं है। 

संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनायी गई आचार-संहिता के अनुसार:

1. पत्रकारिता जनमत के निर्माण का प्राथमिक उपकरण है। पत्रकारों का कर्त्तव्य है वह इस दायित्व को समझे और जनहित की सेवा करने को तैयार रहे। 

2. अपने कर्त्तव्यों का पालन करते समय पत्रकार मानव तथा सामाजिक अधिकारों को महत्त्व देंगे। समाचारों की रिपोर्ट देते समय सद्भाव, न्यायप्रियता की जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे। 

3. समाचारों तथा तथ्यों को ईमानदारी से संग्रहण करेंगे और प्रकाशित करने, टिप्पणी तथा आलोचना करने के अधिकार सिद्धान्त रूप में सुरक्षित रखेंगे। 

4. पत्रकार यह प्रयास करेंगे कि तथ्य की दृष्टि से समाचार सही हो। किसी तथ्य को उल्टा-सीधा कर प्रकट नहीं करना है, न ही किसी जरूरी तथ्यों को दबाना है। झूठी, अविश्वसनीय प्रकाशित न करें |

5. सूचना सभी सूचनाओं व टिप्पणियों के लिए दायित्व स्वीकार करना जरूरी है। यदि दायित्व स्वीकार नहीं किया जाना है तो पहले ही स्पष्ट कर देना चाहिए । 

6. पत्रकार उन समाचारों को जिनसे तनाव बढ़ सकता है, हिंसा को प्रोत्साहन मिल सकता है, नियन्त्रण में रखने की चेष्टा करेंगे। 

7. धन्धे की गोपनीयता की रक्षा करें तथा आचार संहिता की पालना करें। प्रेस परिषद् या न्यायालय में सूचना आचार संहिता का हनन नहीं होता । 

8. पत्रकार अपने आचरण को निजी हितों से प्रभावित नहीं होने देगा। 

9. यदि कोई समाचार अशुद्ध हो तो उसे सुधारा जायेगा । 

10. सभी लोग जो समाचार संग्रह, सम्प्रेषण, वितरण में लगे हैं उन्हें अपने व्यवसाय की गरिमा में पूरा विश्वास होना चाहिए। पत्रकार को अपनी स्थिति का शोषण नहीं होने देना चाहिए। 

11. पत्रकार को रिश्वत या प्रलोभन में कोई समाचार प्रकाशित या अप्रकाशित नहीं करना चाहिए। 

12. समाचार पत्रों में निजी विवादों को सार्वजनिक रूप देना पत्रकारिता की परम्परा का विरोधी है।

13. समाचार-पत्रों में किसी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में अफवाह को प्रकाशित न करें। यदि व्यक्तियों सम्बन्धी समाचार पुष्ट भी हो, तो भी उन्हें तब तक प्रकाशित न करें जब तक उनका प्रकाशन जनहित में न हो ।

14. दूसरों की निंदा या निराधार आरोप गम्भीर अपराध है।

भारत में पत्रकारों ने मर्यादा और नियमों का अनुपालन करने के लिए आचार संहिताओं की रचना की । विभिन्न पत्रकार संगठनों, संघों आदि ने प्रैस परिषद् से आचार संहिता को विधिवत स्वीकृति लेकर प्रकाशन किया है। भारत के प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने 13 अग्रस्त, 1954 को भारतीय समाचार पत्र सम्मेलन में पत्रकारों के दायित्वों पर प्रकाश डाला। उन्होंने उल्लेख किया- ‘स्वाधीनता के साथ-साथ उत्तरदायित्व भी जरूरी है।

भारत में अखिल भारतीय समाचार-पत्र सम्पादक संघ (All India News Paper Editor’s Conference), पत्रकारों की Trade Unions आचार संहिता निर्माण कार्य करती हैं। इसका समुचित अनुपालन करने के लिए एक नियामक संस्था प्रैस परिषद् है। 1952 में प्रैस आयोग की सिफारिश पर इसका गठन हुआ। 

1965 में प्रैस परिषद् अधिनियम पारित हुआ। परिषद् के कुल 28 सदस्यों में सम्पादक, श्रमजीवी पत्रकार, समाचार-पत्र, स्वामी समूह के सदस्य, शिक्षाविद् संसद सदस्य आदि होते हैं। एक विशेष समिति द्वारा नामित इसका अध्यक्ष कार्य संचालन करता है। 

प्रैस परिषद् का उद्देश्य इस प्रकार है 

1. समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता की रक्षा करना । 

2. व्यवसाय के उच्च स्तर के अनुरूप आचार संहिता का निर्माण करना। 

3. ऐसी व्यवस्था करना कि किसी समाचार या समाचारेत्तर सामग्री का प्रकाशन करते समय सार्वजनिक सुरुचि या भाषा लालित्य के नियमों का उल्लंघन न हो । 

4. राष्ट्र सेवा पत्रकारों का सर्वोपरि धर्म है । 

5. ऐसी परिस्थितियों को ध्यान में रखना जिनसे सार्वजनिक हित से सम्बन्धित समाचारों के संकलन व वितरण में रुकावट होती है। पत्रकारिता प्रशिक्षण का सन्तोषजनक प्रबन्धन करना । 

6. यदि सरकार प्रेस कॉउंसिल को शिकायत करे कि किसी पत्र ने 7. विदेशी सूत्रों से सहायता प्राप्त की हो उन मामलों की जांच करना । 

8. समाचार-पत्रों की सहायता हेतु समाचार संकलन और वितरण के लिए सामान्य अभिकरण की स्थापना करना । 

9. प्रैस में कार्यरत कर्मचारियों के बीच सहयोग, सामंजस्य की स्थापना का प्रयास करना तथा स्वामियों के एकाधिपत्य को तोड़ना । 

10. नव तकनीकी अनुसंधानों को प्रोत्साहित कर पत्रकारिता को उत्कृष्ट बनाना |

प्रैस परिषद् पत्र व पत्रकारों के विरुद्ध शिकायतों की जांच करती है। आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध निन्दा प्रस्ताव पारित करती है। प्रेस परिषद किसी पत्रकार या पत्र समूह पर नैतिक तो डाल सकती है पर उसे दण्डित नहीं कर सकती, क्योंकि दण्ड देने का अधिकार क्षेत्र न्यायालय का है। 

प्रैस परिषद् काफी सीमा तक दबाव | आचार सहिता क्रियान्वयन कराने वाला उपक्रम है। चाहे प्रैस परिषद् | अपने निर्णयों को अदालती रूप में लागू नहीं कर पाती फिर भी यह प्रभावी रही है। आचार संहिता और नीति-शास्त्र : विश्व की विभिन्न पत्रकार आचार संहिताओं यथा ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, स्वीडन, भारत में निमित्त संहिताओं को ध्यान में रखते हुए यह मानना ही होगा कि कर्त्तव्य परायणता ही आचार संहिता है। 

हर आचार संहिता नैतिकताओं, मर्यादाओं पर आधारित होती है। चाहे वह ग्रेट ब्रिटेन राष्ट्रीय पत्रकार संघ की आचार-संहिता हो अथवा अमेरिकन न्यूज पेपर्ज गिल्ड या नेशनल एण्ड पेन अमेरिकन प्रेस कांग्रेस की न आचार संहिता हो हर आचार संहिता पत्रकार को आदर्शों पर चलने वाला बनाती है । पदलिप्सा से रहित, निर्भीकमना होकर रचनाशीलता के साथ स्वयं मर्यादित, अन्याय और शोषण का प्रतिरोध करने वाला, राष्ट्र-भक्ति, मानवीयता का सुस्थापन करने वाला पत्रकार बनाना ही आचार-संहिता का एक मात्र उद्देश्य है। 

राष्ट्रीय पत्रकार संगठन (National Union of Journalism) की मान्यता है- “यदि प्रैस घटनाओं को जिस रूप में घटित होती हैं उसी रूप में प्रतिबिम्बित नहीं करती तो उसका होना कोई मायने नहीं है।” लेकिन यह प्रकटीकरण मानवीय सहायता से परिपूर्ण होना चाहिए । 

अन्तर्राष्ट्रीय आचार-संहिता (Inter national Code of Conduct) के अनुसार जनता को सत्य व तथ्यात्मकताओं से अवगत कराना, सामाजिक दायित्वों का निवर्हण करना, व्यवसाय के प्रति ईमानदारी, पूरी निष्ठा रखना जनता के बीच सम्पर्क शीलता कायम करना, प्रजातान्त्रिक व सार्वजनिक हितों की रक्षा व सम्मान करना जीवन मूल्यों, सांस्कृतिक निधियों को संरक्षण व सम्मान देना, समूचे विश्व में एक नवीन सूचना व संचार व्यवस्था का वैश्वीकृत रूप बनाना ही आचार संहिता का विशिष्ट उद्देश्य है। 

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